18-11-81  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

"सम्पूर्णता के समीपता की निशानी"

सदा दिलखुश, खुशनसीब बच्चों प्रति बापदादा बोले:-

‘‘आज दिलाराम बाप अपने दिलतख्तनशीन बच्चों से दिल की बातें करने आये हैं। सभी बच्चे जानते हैं कि दिलाराम के दिल में कौन सी एक बात रहती है? दिलाराम बाप की दिल में सदा सर्व को आराम देने वाले, ऐसे दिल वाले बच्चे दिल में रहते हैं। बाप की दिल में सर्व बच्चों व्ो प्रति एक ही बात यही है कि हर एक बच्चा विशेष आत्मा विश्व का मालिक बने। विश्व के राज्य भाग अधिकारी बनें। हरेक बच्चा एक दो से श्रेष्ठ सजा-सजाया, गुण सम्पन्न, शक्ति सम्पन्न नम्बर वन बने। हर एक की विशेषता एक दो से ज्यादा आर्कषणमय हो जो विश्व देखकर हरेक के गुण गाये। हरेक विश्व की आत्माओं के लिए लाइट हाउस हो, माइट हाउस हो, धरती के चमकते हुए सितारे हो। हरेक सितारे की श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ संकल्प द्वारा जमा की हुई विशेषताएं वा खज़ाने इतने अखुट हों जो हरेक सितारे की अपनी विशेष दुनिया दिखाई दे। हरेक देख-देख अपने दु:ख भूलकर सुख की अनुभूति कर हर्षित हो जायें। सर्व प्राप्तियों की हरेक की अलौकिक दुनिया देख वाह-वाह के गीत गाएं। यह है दिलाराम बापदादा के दिल की बात।

अब बच्चों के दिल में क्या है हरेक अपनी अपनी दिल को अच्छी तरह से जानते हो? दूसरों की दिल को भी जानते हो? वा सिर्फ अपने को जानते हो? जब आपस में रूह-रूहान करते हो तो अपने दिल के उमंग उत्साह सुनाते हो ना! उसमें मुख्य क्या वर्णन करते हो? सबका विशेष यही संकल्प रहता ही है कि जो बाप कहते हैं वह करके दिखायेंगे। वा बाप समान बन ही जाएंगे। तो बाप की दिल और बच्चों के दिल की बात तो एक ही है। फिर भी नम्बरवार पुरूषार्थी क्यों? सभी नम्बरवन क्यों नहीं? क्या सभी नम्बर वन हो सकते हैं? सब विश्व के राजे बन सकते हैं कि वह भी नहीं बन सकते हैं? सिर्फ एक विश्व का राजा बनेगा या और भी बनेंगे अपने अपने समय पर विश्व के राजे बनेंगे? फिर सभी क्यों कहते हो कि हम विश्व का राज्य ले रहे हैं वा विश्व के राज्य-अधिकारी बन रहे हैं? राज्य में आयेंगे या राज्य करेंगे कोई करने वाले और कोई राज्य में आने वाले बनेंगे वा सब करने वाले बनेंगे, क्या होगा? प्रजा तो और बहुत मिल जायेगी, उसकी चिंता नहीं करो। बस सिर्फ राज्य में आने के लिए ही इतनी मेहनत कर रहे हो? राज्य पाने के लिए नहीं, राज्य में आने के लिए? तो राज्य सब करेंगे ना? हरेक समझता है मैं तो करूँगा बाकी कोई आवे, करें वह वो जाने। राजयोग सीख रहे हो ना? राजा बनने का योग सीख रहे हो या राज्य में आने का योग सीख रहे हो? राजयोगी हो ना? राज्य में आने वाले योगी तो नहीं हो ना? ऐसे ही सब नम्बरवन बनेंगे या नम्बरवार ही अन्त तक रहेंगे?

पहले भी सुनाया था कि हरेक अपनी स्टेज के अनुसार, अपने हिसाब से नम्बर वन तो बनेंगे ना! उनके लिए तो वही नम्बर वन गोल्डन स्टेज होगी ना! सबसे श्रेष्ठ नम्बर वन स्टेज, उसके हिसाब से तो अन्त में बन ही जायेंगे ना! अपने हिसाब से सम्पन्न और सम्पूर्ण तो बनेंगे ही ना! सारे कल्प के अन्दर उस आत्मा की नम्बरवन श्रेष्ठ स्टेज तो वही होगी ना! उस हिसाब में नम्बरवार होते भी नम्बरवन बन जायेंगे। हरेक आत्मा की अपनी सम्पूर्ण स्टेज है। जैसे ब्रह्मा की पुरूषार्थी और सम्पूर्ण स्टेज दोनों देखी और अनुभव भी कर रहे हो कि सम्पूर्ण स्टेज पर पहुँचने से क्या-क्या विशेषताएं अव्यक्त रूप में भी पार्ट में ला रहे हैं। जैसे ब्रह्मा बाप की सम्पूर्ण स्टेज और पुरूषार्थी स्टेज, दोनों का अन्तर अनुभव कर रहे रहो वैसे हर एक ब्राह्मण आत्मा का भी सम्पूर्ण स्टेज का स्वरूप है। जो अव्यक्त वतन में बापदादा इमर्ज कर देखते रहते हैं और दिखा भी सकते हैं। उसी सम्पूर्ण स्वरूप को देखते हुए बापदादा देख रहे हैं कि हरेक के सम्पूर्ण स्वरूप कितने रूहानी और झलक और फलक वाले हैं। अभी सम्पूर्णता को पा रहे हो और पाना भी जरूर है। लेकिन कोई बच्चों की सम्पूर्ण स्टेज समीप है। जिसकी निशानी जैसे ब्रह्मा बाप को देखा-सदा अपने सम्पूर्ण स्टेज और भविष्य प्रालब्ध अर्थात् फरिश्ता स्वरूप और देवपद स्वरूप दोनों ही सदा ऐसे स्पष्ट स्मृति में रहते थे जो सामने जाने वाले भी पुरूषार्थी स्वरूप होते हुए भी फरिश्ता रूप और भविष्य श्रीकृष्ण का रूप देखते और वर्णन करते थे। ऐसे बच्चों में भी सम्पूर्णता के समीप आने की निशानी स्वयं भी समीपता का अनुभव करेंगे और औरों को भी अनुभव होगा। व्यक्त में होते अव्यक्त रूप की अनुभूति करेंगे। जिससे सामने आने वाली आत्मायें व्यक्त भाव को भूल अव्यक्त स्थिति का अनुभव करेंगी। यह है समीपता की निशानी। और कई बच्चों को अभी सम्पूर्णता स्पष्ट और समीप नहीं अनुभव होती, उनकी निशानी क्या होगी? जो स्पष्ट चीज़ होती है और समीप चीज़ होती है उसको अनुभव करना सहज होता है। और दूर की चीज़ को अनुभव करना, उसमें विशेष बुद्धि लगानी पड़ती है। ऐसे ही ऐसी आत्माएं भी नालेज के आधार से बुद्धियोग द्वारा सम्पूर्ण स्टेज को खींचकर मेहनत से उसमें स्थित रह सकती हैं।

दूसरी बात- ऐसी आत्माओं को स्पष्ट और समीप न होने के कारण कभी कभी यह भी संकल्प उत्पन्न होता है कि बनना तो चाहिए लेकिन बन सकूंगी? स्वयं के प्रति जरा-सा व्यर्थ संकल्प के रूप में शक पैदा होगा-जिसको कहा जाता है - ‘‘संशय का रायल रूप''। शक जरा-सा लहर के माफिक भी आया तो गया। लेकिन निश्चय बुद्धि विजयन्ति। उसमें यह स्वप्न मात्र संकल्प, लहर मात्र संकल्प भी फाइनल नम्बर में उसे दूर कर देता है। उसका विशेष संस्कार वा स्वभाव अभी अभी बहुत उमंग-उत्साह में उड़ने वाले और अभी अभी स्वयं से दिलशिकस्त। बार-बार जीवन में यह सीढ़ी उतरते और चढ़ते रहेंगे। दिलखुश और दिलशिकस्त की सीढ़ी, कारण? अपनी सम्पूर्ण स्टेज स्पष्ट और समीप नहीं। तो अभी क्या करना है? अभी सम्पूर्ण स्टेज को समीप लाओ। कैसे लायेंगे? उसकी विधी को जानते भी हो। क्या जानते हो? है तो हंसी की बात। बापदादा क्या देखते हैं। कई बच्चे, सब नहीं लेकिन मैजारिटी, क्या करते हैं? ऊंचे ते ऊंचे बाप के लाडले होने के कारण ज्यादा लाडले हो जाते हैं। तो ज्यादा लाडले होने के कारण नाजुक बन जाते हैं। नाजुक तो नाज-नखरे ही करेंगे। नाज नखरे भी कौन से करते हैं? बाप की बातें बाप को ही सुनाने लगते हैं। आप नाजुक बनते और बाप को कहते हैं हमारे तरफ से आप करो। सहनशक्ति की मजबूती कम है, सहनशक्ति है सर्व विघ्नों से बचने का कवच। कवच न पहनने के कारण नाजुक बन जाते हैं। मुझे करना है,यह पाठ बहुत कच्चा रहता है। लेकिन दूसरा करे या बाप करे, यह पाठ नाजुक बना देता है। इसी कारण अलबेलेपन का पर्दा आ जाता है और सम्पूर्ण स्टेज समीप और स्पष्ट नहीं दिखाई देती है। इसलिए तीन लोकों में चक्कर लगाने के बजाऐ इसी दिलखुश और दिलशिकस्त की बातों में, इसी दुनिया में या इसी सीढ़ी पर उतरते चढ़ते हैं। तो इसीलिए क्या करना पड़े? लाड़ले भले बनो लेकिन अलबेलेपन के लाडले नहीं बनो। तो क्या हो जायेगा? अपनी सम्पूर्णता को सहज पा सकेंगे। पहले तो अपने सम्पूर्ण स्टेज को, स्वयं को वरना है अर्थात् सदा उमंगउत्साह की वरमाला पहननी है तब फिर लक्ष्मी को वरेंगे। वा नारायण को वरेंगे। समझा क्या करना है? आप सबकी सम्पूर्ण स्टेज आप पुरूषार्थी का आह्वान कर रही है। जब आप सब सम्पूर्ण स्टेज को पाओ तब ही सम्पूर्ण ब्रह्मा और ब्राह्मण साथ-साथ ब्रह्मघर में जा सकें और फिर राज्य अधिकारी बन सकें। अच्छा!

ऐसे सम्पूर्ण स्टेज के समीप आत्मायें, ब्रह्मा बाप के साथ-साथ सम्पूर्ण स्टेज को वरने वाले, सदा अपने सम्पूर्ण स्टेज के अनुभूति द्वारा औरों को भी सम्पूर्ण बनने की प्रेरणा देने वाले, हरेक को अपने स्पष्टता द्वारा दर्पण बन, सम्पूर्ण स्टेज का स्पष्ट साक्षात्कार कराने वाले, सदा दिलखुश, ऐसे खुशनसीब बच्चों को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।''''

टीचर्स के साथ-’’बाप समान रूहानी सेवाधारी। तो सेवाधारियों को कौन सी सौगात चाहिए? जब एक दो में समान मिलते हैं ते एक दो को सौगात देते हैं ना! तो सेवाधारी हैं ही बाप समान। तो बाप क्या सौगात देगा? वा आप देंगे? ज्ञान तो बहुत सुना है। मुरली भी सुनी। अभी बाकी क्या रह गया? सेवाधारी बापदादा के अति समीप आत्मायें हो, समीप आत्माओं को बापदादा कौन-सी सौगात देंगे? सेवाधारियों को आज बापदादा विशेष एक गोल्डन वर्शन्स की सौगात देते हैं। वह क्या है? ‘‘सदा हर दिन स्व-उत्साह और सर्व को भी उत्साह दिलाने का उत्सव मनाओ।'' यह है सेवाधारियों के लिए स्नेह की सौगात। इसी सौगात को फिर मुरली में स्पष्ट करेंगे लेकिन सौगात तो छोटी अच्छी होती है। तो आज मुरली नहीं चलायेंगे लेकिन सार रूप में सुना रहे हैं कि उत्साह में रहने और उत्साह दिलाने का उत्सव मनाओ। इससे क्या होगा? जो मेहनत करनी पड़ती है वह खत्म हो जायेगी। संस्कार मिलाने की, संस्कार मिटाने की मेहनत से छूट जायेंगे। जैसे जब कोई विशेष उत्सव मनाते हो तो उसमें तन का रोग, धन की कमी, सम्बन्ध सम्पर्क की खिटपिट सब भूल जाता है। ऐसे अगर यह उत्सव सदा मनाओ तो सारी समस्यायें खत्म हो जायेंगी। फिर समय भी नहीं देना पड़ेगा, शक्तियाँ भी नहीं लगानी पड़ेंगी। सदा ऐसे अनुभव करेंगे जैसे सभी फरिश्ते बनकर चल रहे हैं। वैसे भी कहावत है - फरिश्तों के पैर धरनी पर नहीं होते। खुशी में जो नाचता रहता है उसके लिए भी कहते हो कि यह तो उड़ता रहता है, इसके पाँव धरनी पर नहीं हैं। तो सब उड़ने वाले फरिश्ते बन जायेंगे। इसलिए रूहानी सेवाधारी अब यह सेवा करो। कोर्स देना, दिलाना, प्रद- र्शनी करना-कराना, मेले करना-कराना, यह बहुत मेहनत की। अभी इस मेहनत को सहज करने का साधन यह है (जो ऊपर सुनाया) इससे घर बैठे अनुभव करेंगे जैसे शमा के ऊपर परवाने स्वत: ही भागते हुए आ रहे हैं। आखिर भी यह मेहनत कब तक करेंगे, यह साधन भी तो परिवर्तन होंगे ना! तो कम खर्च वाला मशीन, वा कम मेहनत सफलता ज्यादा उसका साधन है- यह सौगात। फिर आपको मेला नहीं करना पड़ेगा लेकिन मेला करने वाले और अनेक निमित्त बन जायेंगे। आपको निमन्त्रण देकर बुलायेंगे। जैसे अभी भी भाषण के लिए बनी बनाई स्टेज पर बुलाते हैं ना! वैसे मेले आदि की फिर इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। अभी आप सब दीदी-दादियों को उद्घाटन के लिए बुलाते हो फिर आप भी दीदी-दादीयाँ हो जायेंगी, उद्घाटन करने वाली दर्शनीय मूर्त्त हो जायेंगी। तो यह अच्छा है ना! अभी तक भी लगाओ टेन्ट, गाइड बुलाओ, लगाने वालों को बुलाओ... यही मेहनत करनी है! अच्छा-अभी तो सौगात मिल गई ना? अभी देंगी क्या? यही संकल्प करो कि ‘‘न कभी उत्साह कम करेंगे और न दूसरों का उत्साह कम होने देंगे।'' यही देना है। कुछ भी हो जाय, जैसे स्थूल व्रत रखते हैं, तो उसमें भी भूख और प्यास लगती है लेकिन लगते हुए भी व्रत नहीं छोड़ते, चाहे बेहोश भी क्यों न हो जायें। तो आप भी व्रत लो- कोई भी समस्या आ जाए, कोई उत्साह को मिटाने वाला आ जाए लेकिन न उत्साह छोड़ेंगे, न औरों में कम करायेंगे। बढ़ेंगे और बढ़ायेंगे। तो सदा ही उत्सव होंगे, सदा मेले होगे, सदा सेमीनार होंगे, सदा इन्टरनेशनल कोन्फेरेंस होगी अच्छा-मिली भी सौगात, ले भी ली और क्या चाहिए।'' विदेशी बच्चों की सेवा की मुबारक देते हुए-सेवा के प्रति और भी इशारा-

‘‘बापदादा सेवा के लिए कभी भी मना नहीं करते हैं, खूब धूमधाम से सेवा करो। जिन्हों को भी निमन्त्रण देना हो दे सकते हो। फारेन वालों को सेवा की मुबारक हो। सभी सेवा की उमंग-उत्साह में अच्छे आगे बढ़ रहे हैं। और ऐसे बड़ते हुए विशेष आत्माओं की सेवार्थ निमित्त बन जायेंगे। जिनको विशेष वी.आई.पी. कहते हो, अभी वी.आई.पीज. के निकलने का समय पहुँच गया है। इसलिए सेवा से स्वत: निकलते रहेंगे।

सभी को विशेष रूहानियत का अनुभव कराओ। शान्ति, शक्ति का अनुभव कराओ। नालेज तो बहुत है लेकिन एक सेकेण्ड की अनुभूति ही उन्हों के लिए नवीनता है। सारी विदेश की मैजारिटी आर्टिफीशियल शान्ति है, तो रीयल शान्ति, रीयल सुख रीयल स्वरूप की अनुभूति है ही नहीं। अगर वह एक सेकेण्ड की भी हो जायेगी तो नवीनता का अनुभव करेंगे। वैसे भी विदेश में सदा नई चीज़ पसन्द करते हैं। इसलिए यह नवीनता करो। कोई भी नामधारी महात्मा यह अनुभूति नहीं करा सकते। आत्मा परमात्मा का शब्द तो सुनते रहते हैं लेकिन कनेक्शन जुड़वाकर अनुभव करना यह नवीनता है। जिसको कहा जाता है- रीयल्टी का अनुभव करना। यही साधन है। सभी सर्विसएबुल समीप रत्नों को नाम सहित याद। अच्छा!''

कुमारों के साथ-अव्यक्त बापदादा की मुलाकात-’’कुमारों को सदा यह स्मृति रहे कि हम कुमार नहीं लेकिन ब्रह्माकुमार हैं, रूहानी सेवाधारी हैं। सेवाधारी अर्थात् स्वयं सम्पन्न स्वरूप होकर औरों को देने वाले। तो सदा अपने को सर्व खज़ानों से सम्पन्न अनुभव करते हो? सेवाधारी समझ कर सेवा करेंगे तो सफलतामूर्त्त होंगे। सेवा की विशेषता ही है सदा नम्रचित। निमित्त और नम्रचित यह दोनों विशेषताएं सेवा में सफलता स्वरूप बनाती हैं। कुमार सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ने वाले होते हैं। लेकिन बागे बढ़ते हुए निमित्त और नम्रचित की विशेषता नहीं होगी तो सेवा करेंगे, मेहनत करेंगे सफलता कम दिखाई देगी। तो कुमार सेवा में तो होशियार हो ना? सभी प्लैनिंग बुद्धि हो। जैसे सेवा की भाग दौड़ में होशियार हो वैसे इन दो विशेषताओं में भी होशियार बनो। विशेषताओं सहित विशेष सेवाधारी बनो। नहीं तो टैम्प्रेरी टाइम की सफलता तो होगी लेकिन चलते-चलते थोड़े टाइम के बाद कनफ्युजड हो जायेंगे। यह क्या हुआ, यह क्यों हुआ, यह दीवार आ जायेगी।

तो सदा यह दो बातें स्मृति में रखना। इससे सर्विस में फास्ट और फर्स्ट हो जायेंगे। कुमारों को सेवा तो करनी है लेकिन मर्या- दाओं की लकीर के अन्दर रहकर करनी है फिर देखो सफलता हुई पड़ी है।

कुमारों को सब प्रकार के चांस हैं, सेवा करने में भी चांस, पुरूषार्थ में आगे जाने का भी चांस और साथ-साथ अपने परिवार को आगे बढ़ाने का चांस है। कुमार जीवन लकी जीवन है। कुमार अर्थात् सदा स्वतन्त्र। किसी भी प्रकार के बंधन के वश नहीं। ऐसे स्वतन्त्र अनुभव करते हो ना? स्वयं के व्यर्थ संकल्प भी एक बंधन है,यह बंधन भी उड़ती कला से नीचे ले आते हैं। तो निर्बन्धन कुमार। व्यर्थ संकल्प भी समाप्त। निर्बन्धन आत्मा ही तीव्रगति में जा सकती है। बापदादा को कुमारों के ऊपर नाज है कि कुमार अपने जीवन को कितना श्रेष्ठ बना रहे हैं। सदा इसी स्मृति में रहो कि जमारे जैसा भाग्यवान कोई नहीं, कुमारों का अपना भाग्य, कुमारियों का अपना। कुमारियाँ स्वतन्त्र होकर सेवा नहीं कर सकती। कुमार तो कहाँ भी अकेले जाकर सेवा कर सकते हैं। कुमारों को क्या बंधन है। कुमारियाँ तो फिर भी आजकल की दुनिया के हिसाब से बंधन में हैं, कुमार तो आलराउन्ड सेवा कर सकते हैं।

कुमार हैं डबल लाइट। किसी भी प्रकार का बोझ नहीं। न संकल्पों का बोझ, न संबंध सम्पर्क का बोझ। कुमार हैं ही निर्बन्धन, क्योंकि नालेजफुल हो गये। नालेजफुल व्यर्थ की तरफ कभी भी जा नहीं सकते। व्यर्थ संकल्प भी नालेजफुल के आगे आ नहीं सकता। संकल्प में भी शक्तिवान, कर्म में भी शक्तिवान। मास्टर सर्वशक्तिवान हो। तो सदा ऐसे अनुभव करते हो कि हम मास्टर सर्वशक्तिवान हैं? क्योंकि कुमारों के पीछे माया चक्र बहुत लगाती है। माया को भी कुमार-कुमारियाँ अच्छे लगते हैं। जैसे बाप को बहुत प्रिय हो, ऐसे माया को भी प्रिय हो। इसलिए माया से सावधान रहना। सदा अपने को कम्बाइन्ड समझना, अकेला नहीं, युगल साथ है। सदा कम्बाइन्ड समझेंगे तो माया आ नहीं सकती। अच्छा!''

पार्टियों के साथ-व्यक्तिगत मुलाकात

1. वर्तमान समय का विशेष अटेन्शन- व्यर्थ संकल्पों की समाप्ति : ‘‘सभी अपने को समर्थ आत्मायें समझते हो? समर्थ आत्मायें अर्थात् जिनका व्यर्थ का खाता समाप्त हो। नहीं तो ब्राह्मण जीवन में व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म बहुत समय व्यर्थ गंवा देते हैं। जितनी कमाई जमा करने चाहो उतनी नहीं कर सकते हो। व्यर्थ का खाता समर्थ बनने नहीं देता। अब व्यर्थ का खाता समाप्त करो। जब नया चौपड़ा रखते हो तो पुराने को खत्म कर देते हो ना! तो वर्तमान समय यही विशेष अटेन्शन रखो कि व्यर्थ का समाप्त कर सदा समर्थ रहें। मास्टर सर्वशक्तिवान जो चाहो वह कर सकते हो। जैसे किसको तन की वा धन की शक्ति है तो जो चाहो वह कर सकता है, अगर शक्ति नहीं तो चाहते भी मजबूर हो जाता। ऐसे आप मा. सर्वशक्तिवान क्या नहीं कर सकते! सिर्फ अटेन्शन। बार-बार अटेन्शन चाहिए। अमृतवेले अटेन्शन दिया, रात को दिया, बाकी मध्य में अलबेलापन हो गया तो रिजल्ट क्या होगी? व्यर्थ का खाता समाप्त नहीं होगा। कुछ न कुछ पुराना खाता रह जायेगा। इसलिए बार-बार यही अटेन्शन दो कि हम मा. सर्वशक्तिवान हैं। चैकिंग चाहिए अच्छी तरह से। क्योंकि माया अभी भी अपनी बारी लेने के लिए होशियार बैठी है। वह अन्त में सबसे ज्यादा होशियार हो जाती है क्योंकि सदा के लिए विदाई लेनी है ना! तो अपनी होशियारी तो दिखायेगी ना! इसलिए सदा अटेन्शन रखो। क्लास में गये, याद में बैठे उस समय तो अटेन्शन रहता है लेकिन बार-बार अटेन्शन। और जिसका बार-बार अटेन्शन है उसकी निशानी है- सब टेन्शन से परे। लाडले तो हो ही, बाप के बने, श्रेष्ठ भाग्य का सितारा चमका और क्या चाहिए। सिर्फ यही छोटा-सा काम दिया है-कि बार-बार बुद्धि द्वारा अटैन्शन रखो। अच्छा!''

पार्टियों से:-

मायाजीत बनने के साथ-साथ प्रकृतिजीत भी बनो:- सदा मायाजीत और प्रकृतिजीत हो? मायाजीत तो बन ही रहे हो लेकिन प्रकृतिजीत भी बनो क्योंकि अभी प्रकृति की हलचल तो बहुत होनी हैं ना! हलचल में अचल रहो, ऐसे अचल बने हो? कभी समुद्र का जल अपना प्रभाव दिखायेगा तो कभी धरनी अपना प्रभाव दिखायेगी। अगर प्रकृतिजीत होंगे तो प्रकृति की कोई भी हलचल अपने को हिला नहीं सकेगी। सदा साक्षी होकर सब खेल देखते रहेंगे। जैसे फरिश्तों को सदा ऊंची पहाड़ी पर दिखाते हैं, तो आप फरिश्ते सदा ऊंची स्टेज अर्थात् ऊंची पहाड़ी पर रहने वाले। ऐसी ऊंची स्टेज पर रहते हो? जितना ऊंचे होंगे उतना हलचल से स्वत: परे रहेंगे। अभी देखो यहाँ पहाड़ी पर आते हो तो नीचे की हलचल से स्वत: ही परे हो ना! शहरों में कितनी हलचल और यहाँ कितनी शान्ति और साधारण स्थिति में भी कितना रात-दिन का अन्तर होगा।